हरियाणा / नई दिल्ली:
राजनीति में कब क्या हो जाए, कोई नहीं जानता। हरियाणा के कद्दावर नेता, स्वर्गीय मुख्यमंत्री भजनलाल के सुपुत्र और पूर्व सांसद कुलदीप बिश्नोई के लिए यह समय अत्यंत चुनौतीपूर्ण हो सकता है। बिश्नोई समाज, जिसने उन्हें हमेशा सादगी, पर्यावरण प्रेम और समाज सेवा के आदर्शों पर आसीन किया था, आज उसी समाज ने उन्हें उनके सर्वोच्च पद से हटा दिया है। बिश्नोई समाज के संरक्षक पद से उनका निष्कासन और राज्यसभा में जाने के उनके ख्वाबों को झटका, यह सब किसी राजनीतिक ड्रामे से कम नहीं।
कुलदीप बिश्नोई का अंतरजातीय विवाह पर विवाद:
कुलदीप बिश्नोई, जिनका नाम पहले बिश्नोई समाज के उत्थान के लिए जाना जाता था, अब अपने ही परिवार के भीतर एक बड़े विवाद से घिरे हैं। उनके बेटे भव्य बिश्नोई द्वारा किए गए अंतरजातीय विवाह ने समाज में आग लगा दी है। बिश्नोई समाज में पारंपरिक मूल्य और परिवार की आदर्श व्यवस्था का बहुत महत्व है, और जब एक नेता का परिवार इस परंपरा से बाहर जाता है, तो समाज से असहमति स्वाभाविक है।
कुलदीप बिश्नोई के खिलाफ यह सवाल उठता है: अगर एक नेता खुद अपने परिवार के आदर्शों को नहीं निभा सकता, तो वह समाज को क्या सिखा सकता है? एक व्यक्ति जो समाज के सबसे बड़े पद पर बैठा हो, अगर वह अपनी जिम्मेदारी से भागता है और समाज की बुनियादी परंपराओं को नकारता है, तो उससे समाज की अपेक्षाएँ कैसे पूरी हो सकती हैं?
राज्यसभा की सीट: कुलदीप का सपना हुआ अधूरा
हरियाणा में कृष्णलाल पंवार के इस्तीफे के बाद खाली हुई राज्यसभा की सीट के लिए कुलदीप बिश्नोई का नाम प्रमुख रूप से उभरा था। बीजेपी के नेताओं को लगता था कि कुलदीप बिश्नोई को राज्यसभा में भेजने से न केवल हरियाणा का बिश्नोई समाज बीजेपी के साथ आएगा, बल्कि कुलदीप का नाम हरियाणा के साथ-साथ पूरे भारत में सम्मानित होगा। पार्टी को लगा था कि कुलदीप का राज्यसभा में आना पार्टी के लिए फायदेमंद होगा, क्योंकि वह बिश्नोई समाज के बड़े चेहरे हैं।
लेकिन समाज के भीतर गहराते हुए विवादों ने इस मुद्दे को उलझा दिया है। कुलदीप बिश्नोई को बिश्नोई समाज के सर्वोच्च पद से हटाने का निर्णय अब उनके राज्यसभा जाने के ख्वाब को भी चूर कर रहा है। यह समाज का स्पष्ट संदेश है कि अगर कोई व्यक्ति अपने समाज की जड़ों से कटकर विवादों में उलझता है, तो पार्टी भी उसे एक सम्मानित पद पर बैठने का जोखिम नहीं उठाएगी।
बिश्नोई रत्न की उपाधि भी अधरझुल में,
कुलदीप बिश्नोई को बिश्नोई समाज की तरफ से दी गई "बिश्नोई रत्न" की उपाधि भी अब विवादों में आ चुकी है। बिश्नोई समाज के प्रमुख सदस्यों ने इस उपाधि को वापस लेने की मांग की है। सोशल मीडिया पर उभरे इस विरोध ने कुलदीप के लिए नया संकट खड़ा कर दिया है। "बिश्नोई रत्न" उपाधि अब उनके लिए भारी पड़ रही है, और समाज के लोग यह मांग कर रहे हैं कि अगर वह अपने आदर्शों से भटक चुके हैं, तो उन्हें यह सम्मान नहीं मिलना चाहिए।
देवेंद्र बुढ़िया का खुलासा और पनिहार से विवाद:
इस बीच, बिश्नोई महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष देवेंद्र बुढ़िया ने एक और बड़ा विवाद खड़ा किया है। उन्होंने नलवा के विधायक रणधीर पनिहार पर गंभीर आरोप लगाए हैं। पनिहार, जो कुलदीप बिश्नोई के करीबी माने जाते हैं, पर बुढ़िया ने सोशल मीडिया पर आरोप लगाए कि उन्हें दिल्ली बुलाकर बुरी तरह से दुर्व्यवहार किया गया। यह विवाद अब और भी गहरा हो गया है, क्योंकि यह बात साफ हो रही है कि कुलदीप बिश्नोई और उनके करीबी लोग अब एक-दूसरे के खिलाफ मोर्चा खोल चुके हैं।
कुलदीप के लिए क्या आगे है?
कुलदीप बिश्नोई के लिए अब सवाल उठता है कि उनके भविष्य का रास्ता क्या होगा। बिश्नोई महासभा ने संरक्षक पद से हटाकर, उनके आदर्शों और नेतृत्व पर सवाल खड़े किए गए हैं, और राज्यसभा की सीट पर भी उनका नाम अब ओझल हो गया है। पार्टी में भी अब कुलदीप के खिलाफ माहौल बन चुका है। बीजेपी नेतृत्व जानता है कि कोई भी विवादित व्यक्ति कभी भी पार्टी के लिए फायदेमंद नहीं हो सकता, खासकर जब वह समाज की भावनाओं से खेल रहा हो।
निष्कर्ष: कुलदीप का राजनीतिक भविष्य संदेहास्पद
कुलदीप बिश्नोई का राज्यसभा का सपना अब अधूरा साबित होता दिखाई दे रहा है। उनका बिश्नोई महासभा से बाहर किया जाना और राज्यसभा की उम्मीदवारी से हाथ खींच लिया जाना यह दर्शाता है कि समाज और पार्टी के आदर्शों से भटकने वाले नेताओं का कोई भविष्य नहीं होता। कुलदीप के पास अब खुद को फिर से साबित करने का मौका है, लेकिन सवाल यह है कि क्या वह अपनी राजनीतिक और पारिवारिक छवि को सुधारने में सक्षम होंगे? अगर वह समाज के विश्वास को फिर से हासिल नहीं कर पाए, तो यह उनका राजनीतिक अंत हो सकता है।
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